Tuesday, April 23, 2019

आईएस ने ली धमाकों की जिम्मेदारी, मंत्री ने कहा- ब्लास्ट क्राइस्टचर्च हमले का बदला

कोलंबो.  श्रीलंका में हुए धमाकों की जिम्मेदारी आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली है। वहीं, श्रीलंका के मंत्री रूवन विजयवर्धने ने कहा कि शुरुआती जांच बताती है कि देश में हुए धमाके क्राइस्टचर्च (न्यूजीलैंड) हमले का बदला हैं। रूवन ने नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) समेत देश के दो इस्लामिक संगठनों को धमाकों के लिए जिम्मेदार बताया था। श्रीलंका में 21 अप्रैल को चर्चों और होटलों में हुए सीरियल धमाकों में 321 लोग मारे गए थे। 22 अप्रैल को एक बस स्टैंड में करीब 87 बम बरामद किए गए थे। क्राइस्टचर्च में 15 मार्च को दो मस्जिदों में हमला हुआ था, जिसमें 50 लोग मारे गए थे।

विजयवर्धने ने बताया, "हमले से पहले कुछ सरकारी अधिकारियों को भेजे गए एक खुफिया मेमो के मुताबिक, इस्लामिक चरमपंथी समूह के एक सदस्य ने क्राइस्टचर्च शूटिंग के बाद सोशल मीडिया पर कट्टरपंथी सामग्री पोस्ट की थी।" सरकार ने नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) को धमाकों का जिम्मेदार बताया था। विजयवर्धने एनटीजे पर बैन लगाने का कह चुके हैं। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने इमरजेंसी की घोषणा कर चुके हैं।

'सरकार सुरक्षा में नाकाम रही'
विपक्ष के नेता और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने कहा कि सरकार देश की सुरक्षा करने में नाकाम रही है। जब मैंने सत्ता सौंपी थी तो देश आतंकवाद से मुक्त था। मेरी सरकार के दौरान देश में कोई हमला नहीं हुआ। अगर सरकार लोगों की सुरक्षा नहीं कर सकती तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं।

2014 में हुई थी एनटीजे की स्थापना
एनटीजे की स्थापना 2014 में श्रीलंका के कट्टनकुंडी क्षेत्र में जहरान हाशिम उर्फ अबु उबैदा ने की थी। यह पूर्वी श्रीलंका का मुस्लिम बाहुल्य इलाका है। माना जा रहा है कि जिस आत्मघाती हमलावर ने शांगरी ला होटल को निशाना बनाया, वह जहरान ही था।

अब तक 40 संदिग्ध गिरफ्तार

पुलिस के मुताबिक, इस मामले में अब तक 40 संदिग्धाें को गिरफ्तार किया जा चुका है। रविवार देर रात पुलिस को कोलंबो एयरपोर्ट के पास छह फीट लंबा पाइप बम मिला। इसे एयरफोर्स ने डिफ्यूज कर दिया।

स्थानीय स्तर पर बना था बम

एयरफोर्स के प्रवक्ता ग्रुप कैप्टन गिहान सेनेविरत्ने ने बताया कि एयरपोर्ट पर मिला आईईडी स्थानीय स्तर पर बना था। बम के मिलने के बाद एयरपोर्ट जाने वाले लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। श्रीलंका की एयरलाइन कंपनियों ने भी कड़ी सुरक्षा जांच के चलते यात्रियों को फ्लाइट के उड़ान भरने से चार घंटे पहले एयरपोर्ट पहुंचने के निर्देश जारी कर दिए।

कोलंबो में हुआ था पहला धमाका
पहला धमाका कोलंबो के कोच्चिकड़े स्थित सेंट एंथनी चर्च में हुआ, इसके बाद नेगोंबो के कटुवपिटिया स्थित सेंट सेबेस्टियन चर्च और बट्टीकलोआ स्थित चर्च में धमाके हुए। इनके अलावा कोलंबो के फाइव स्टार होटलों शांगरी ला, किंग्सबरी और सिनेमन ग्रैंड में भी ब्लास्ट हुए। आठ में से शुरुआती छह धमाके लगभग एक ही समय पर सुबह 8:45 बजे हुए। बाकी दो धमाके दोपहर में दो से ढाई बजे के बीच कोलंबो में हुए।

Wednesday, April 10, 2019

लोकसभा चुनाव 2019: बिहार में लालू के MY से तेजस्वी के MUNIYA तक

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने हाल ही में बनी 'विकासशील इंसान पार्टी' (वीआईपी) के लिए तीन सीटें छोड़ीं तो उसके इस फ़ैसले से सबको हैरानी हुई.

हैरत की वजह ये थी कि वीआईपी लगभग छह महीने पहले बनी थी और आरजेडी ने इतनी तवज्जो दी.

वैसे ये फ़ॉर्मूला नया नहीं है. लालू प्रसाद यादव पहले से ये फ़ॉर्मूला अपनाते आए हैं. ये आरजेडी की दलितों और पिछड़ों को अपने साथ जोड़ने की एक और कोशिश है जो पिछले कुछ सालों में किसी न किसी वजह से आरजेडी को छोड़ गए हैं.

कई राजनीतिक पंडित, ख़ासकर दिल्ली में बैठे लोग, उस वक़्त भी हैरत में थे जब आरजेडी ने उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के लिए पांच और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के लिए तीन सीटें दीं.

90 के दशक में बिहार के तमाम चुनावों में लालू यादव की जीत का श्रेय उस विविधतापूर्ण गठबंधन को दिया गया जो उन्होंने अगस्त 1990 में मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू होने के बाद बनाया था.

लेकिन 1994 में नीतीश कुमार ने लालू का साथ छोड़ा और बीजेपी का हाथ थाम लिया. इसके बाद लालू यादव की पार्टी धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ती गई. हालांकि कुछ सालों बाद दलित नेता राम विलास पासवान लालू की धारा में जुड़ गए.

24 नवंबर, 2005 को बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने अपना ख़ुद का फ़ॉर्मूला बनाया. उन्होंने स्थानीय निकाय के चुनाव में अति पिछड़े वर्ग को 20 फ़ीसदी सीटें देकर लुभाना शुरू किया.

इससे नीतीश कुमार को अपना वोटबैंक मज़ूबत करने में मदद मिली और अति पिछड़े वर्ग के नेता धीरे-धीरे नीतीश की पार्टी यानी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की तरफ़ आकर्षित होने लगे.

निषाद या सहनी जैसी कई उप-जातियां बिहार की राजनीतिक गणित में अहम भूमिका निभाती हैं और ये अति पिछड़े वर्ग का बड़ा हिस्सा हैं. बिहार में निषाद समुदाय नाव चलाने, नाव बनाने और मछली पकड़ने जैसे पारंपरिक कामों के ज़रिए अपनी जीविका चलाता है.

वीआईपी के संस्थापक मुकेश सहनी कहते हैं कि निषादों की संख्या बिहार की कुल आबादी का लगभग 15 फ़ीसदी है. बिहार में नदी किनारे वाले इलाक़ों में इनकी अच्छी-ख़ासी मौजूदगी देखी जा सकती है. यहां ये बताना भी ज़रूरी है कि ऐसे कई इलाक़ों में यादवों की आबादी भी ठीक ठाक है.

चूंकि राज्य में निषाद समुदाय की आबादी काफ़ी है इसलिए वो सूबे की राजनीति में हमेशा से मांग में रहे हैं. हालांकि निषाद नेताओं को आगे ले आने वाला कोई और नहीं बल्कि लालू यादव थे.

उन्होंने कुछ निषाद नेताओं को अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया. इसके अलावा लालू ने कप्तान जय नारायण निषाद को मुज़फ़्फ़पुर से पार्टी का उम्मीदवार बनाया जो उस ज़माने में एक असाधारण फ़ैसला था.

बाद में कप्तान निषाद नीतीश के और फिर भगवा ख़ेमे में आ गए. उनके बेटे अजय निषाद ने पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार के तौर पर मुज़फ़्फ़रनगर सीट जीती थी और इस बार भी वो बीजेपी के टिकट से ही चुनाव लड़ रहे हैं.

मुकेश सहनी ने चार नवंबर, 2018 में वीआईपी बनाई और उनकी पार्टी तीन सीटों- मधुबनी, खगड़िया और मुज़फ़्फ़रपुर से चुनाव लड़ रही है. सहनी के साथ समस्या ये है कि उनके उम्मीदवार जिन सीटों से चुनाव लड़ रहे हैं वहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी अच्छी ख़ासी है.

मुकेश सहनी ख़ुद खगड़िया से मैदान में हैं. खगड़िया वही निर्वाचन क्षेत्र है जहां से एनडीए के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने अपने मौजूदा सांसद चौधरी महबूब अली क़ैसर को एक बार फिर मैदान में उतारा है.

यही वजह है कि खगड़िया में मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए वीआईपी पड़ोसी जिले बेगूसराय में आरजेडी के उम्मीदवार तनवीर हसन का समर्थन कर रही है न कि सीपीआई के प्रत्याशी कन्हैया कुमार का.

मुकेश सहनी ने बॉलीवुड की दुनिया से राजनीति में क़दम रखा है. उनका कहना है कि वो इस धारणा को ख़त्म करना चाहते हैं कि उनकी जाति मुसलमानों के ख़िलाफ़ है.

2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सहनी के साथ बिहार के कई इलाक़ों का दौरा किया था. इसके अलावा सहनी पर जनवरी, 2015 में हुए अज़ीज़पुर दंगों के पीछे होने के आरोप भी लगे थे.

ये दंगा वैशाली ज़िले के एक गांव में हुआ था जहां निषाद समुदाय बहुसंख्यक है. इस दंगे में मुस्लिम समुदाय के चार व्यक्तियों की मौत हुई थी.

निषाद और नदियों से जुड़े कारोबार करने वाले समुदायों के लिए मुश्किलें तब आनी शुरू हुईं जब पुल, बैराज और बांध बनने लगे. मिसाल के तौर पर फ़रक्का बराज बनने के बाद इन समुदायों को भारी आर्थिक नुक़सान हुआ.

गंगा और उसकी सहायक नदियों में चलने वाली नावों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आई है.

बैराज के बनने से नदियों में ऊपर से मछलियां आनी कम हो गईं हैं. नतीजन, कई तालाब और नदियां होने के बावजूद बिहार अब मछलियों के लिए आंध्र प्रदेश पर निर्भर हो गया है.

यही वजह है कि पिछले साल जब राज्य सरकार ने आंध्र प्रदेश से आने वाली मछलियों पर ये दलील देकर पाबंदी लगाई कि इनसे कैंसर हो रहा है तो इस कारोबार से जुड़े लोगों ने इस पर शक ज़ाहिर किया.

पिछले कई सालों में सहनी जाति के लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार हुए और प्रवासी मज़दूर बनकर दूसरे राज्यों में पलायन कर गए. इनमें से कुछ तो अपराध की दुनिया में शामिल हो गए.

इस हालात को भांपकर ही ख़ुद को 'सन ऑफ़ मल्लाह' (मल्लाह का बेटा) कहने वाले मुकेश सहनी ने वीआईपी बनाई. पार्टी बनाने के पीछे निश्चित तौर पर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी.

निषाद समुदाय के राजनीतिक महत्व को समझते हुए ही सालों पहले उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मिर्ज़ापुर की पूर्व दस्युरानी फूलन देवी को टिकट दिया था.

Tuesday, April 2, 2019

लेह में सेना ने सिंधु नदी पर 40 दिन में बना दिया 260 फीट का सस्पेंशन ब्रिज

श्रीनगर. भारतीय सेना के जवानों ने इंजीनियरिंग की मिसाल कायम की है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लेह में सिंधु नदी पर 260 फीट लंबा सस्पेंशन ब्रिज महज 40 दिन में बना दिया। इस नदी पर बना यह सबसे लंबा संस्पेंशन ब्रिज है। सोमवार को यह मैत्री ब्रिज आम लोगों के लिए खोल दिया गया। इस मौके पर लोगों ने सेना का शुक्रिया अदा किया।

यह पुल लेह के लोगों और सेना के संबंधों का प्रतीक
सेना की फायर एंड फ्यूरी कोर के कॉम्‍बेट इंजीनियर्स ने यह पुल लेह के छोग्‍लाम्‍सार गांव में बनाया है। यह पुल लेह-लद्दाख क्षेत्र में सेना और आम जनता के बीच संबंधों का प्रतीक है। इसलिए इसे मैत्री पुल नाम दिया गया है। इस पुल को बनाने में करीब 500 टन उपकरण और निर्माण सामग्री यहां लाई गई।

89 साल के सेवानिवृत सैनिक नायक फुंचोक आंगदस और 1947 से लेकर कारगिल युद्ध में हिस्सा ले चुके पूर्व सैनिकों ने सोमवार को इस पुल का उद्घाटन किया। इस मौके पर सेना और स्थानीय प्रशासन के कई अफसर मौजूद रहे।

लद्दाख के 3 गांवों के लिए मददगार रहेगा यह पुल
मैत्री पुल के बनने से लद्दाख के लोगों को बड़ी राहत मिली है। यह पुल लद्दाख के तीन सबसे बड़े गांवों छोग्‍लाम्‍सार, स्‍तोक और छुछोत के लोगों के लिए मददगार साबित होगा।

a'10 सेमी के 60 टुकड़े ट्रैक किए गए'
नासा प्रमुख जिम ब्राइडनस्टाइन अपने कर्मचारियों को संबोधित कर कर रहे थे। उन्होंने कहा, "हम भारतीय सैटेलाइट के टुकड़ों को ट्रैक करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब तक हमने 10 सेमी या उससे बड़े 60 टुकड़ों को ट्रैक किया है।" यह सैटेलाइट आईएसएस से नीचे स्थित था।

ब्राइडनस्टाइन के मुताबिक, "24 टुकड़े आईएसएस के पास चक्कर लगा रहे हैं, यह खतरनाक साबित हो सकते हैं। चिंता की बात यह है कि सैटेलाइट नष्ट किए जाने के बाद मलबा आईएसएस के ऊपर पहुंच गया है। इस तरह की गतिविधियां भविष्य में मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए अच्छी साबित नहीं होंगी। यह हमें स्वीकार्य नहीं है। नासा का रुख इस मामले में काफी स्पष्ट है।"

वहीं, अमेरिकी सेना के मुताबिक- अब तक 10 सेमी से बड़े करीब 23 हजार टुकड़े ट्रैक किए गए हैं। ये टुकड़े मलबे के रूप में फैले हैं। इनमें 3 हजार टुकड़े 2007 में चीनी एंटी-सैटेलाइट टेस्ट में निकले थे।

नासा चीफ ने यह भी कहा कि आईएसएस से टुकड़ों के टकराने का खतरा 44% तक बढ़ चुका है। हालांकि यह खतरा समय के साथ कम हो जाएगा क्योंकि वायुमंडल में प्रवेश के साथ ही मलबा जल जाएगा।